
_छुपा मन का मीत_____
मेरे उद्देश्यों की सिद्धि में, मैं सफ़लता पाऊँ! साधन गर तू हो, मैं साधिका बन जाऊँ। कितने बन्दों में, कितने छन्दों में तुम समाओगे! कितने ग्रंथों में, कितने पंथों में तुम पढ़े जाओगे। तुम्हारी अनुपम गाथा है, जिसे मैंने हृदय से गाया है! मेरे कवयित्री हृदय ने जिसे,सदा ही निरुपम चित्राया है। तेरे सहज स्वरूप…